मेने सुना है की बचपन ज़िंदगी का अबसे अच्छा समय होता है वेसा आनंद ओर कहा! अच्छा तो बड़े होने के बाद हम बदल जाते है, ऐसा होता है?
मुजे लगता है की हा बड़े होने के बाद काफी रेस्पॉन्सिबिलिटी आ जाती है जो बचपन मे हमे नहीं होती। ‘बदल जाना’ इसका भी काफी अलग अलग मतलब होता है जेसे की कोई दिखाव मे बदलता है, किसी का बात करने का तरीका बदल जाता है ओर पहले से काफी अच्छा हो जाता है, किसी का व्यवहार बदल जाता है, …
बचपन मे हमारे बोहोत दोस्त होते है ओर सभी जगे पे होते है, जेसे की हमारे घर के आजू बाजू वाले दोस्त, स्कूल के, ट्यूशन के दोस्त। हम जहा भी जाते वहा नए नए दोस्त बनाते हे।
हम जब बड़े होते है तो हमे दोस्त बनाना इतना अच्छा नहीं लगता जितना बचपन मे लगता था। किसी जे साथ बात करने का मन नहीं होता, लेकिन मे एक बात कहू दोस्तो की हमे नए दोस्त बनाने चाहिए जिसके वजे से हमारे लाइफ मे आनंद बना रहता है ओर नया नया सीखने मिलता है।
मे ये नही कह रहा ही तुम दोस्त दोस्त ही करते रहो ओर अपना काम ना करो, नही लेकिन मे तो यह कह रहा हु की तुम ऐसे दोस्त बनाओ जो तुम्हें डिस्टर्ब ना करे, तुम्हें परेशान ना करे। हर वक्त तुम्हें उनके पीछे ना रहना पड़े, बिना मतलब का तुम्हारा समय ना ले।
मुजे ऐसा लगता है की दोस्तो बड़े होने के बाद हम बदल नहीं जाते हम जेसे थे वेसे ही रहते है लेकिन हमे जेसा दोस्त चाहिए होता है वेसा दोस्त हमे नही मिलता जिसके वजे से हमे दोस्त बनाना अच्छा नही लगता।
ओर दूसरी ओर काम के वजे से हम दोस्त नही बनाते ओर फिर हमे अकेले ही रहना अच्छा लगने लगता है।
हा फिर भी कुछ भी बोलो बचपन तो बचपन होता है क्या आनंद था – तू मेरा बेस्ट फ्रेंड हैना तो तू उस लड़के से बात नही करेगा, अपने चारो मेरी बेंच पर बेथ कर खाना खाएँगे, Maths का स्यब्जेक्ट चालू हो तब मेरे पास दो पेंसिल है मे एक तुम्हें देता हु लेकिन तुम किसी ओर को मत देना खासकर तेरे आगे वाले को क्यूकी मेने 2 दिन पहले उसे पेंसिल दी थी अभी तक उसने वापिस नही दी इसलिए उसे मत देना। क्या क्या ओर केसी केसी बाते होती थी सही ना।
आप क्या सोचते हो comment करके हमे जरूर बताए।