- यह वैभवलक्ष्मी व्रत सौभाग्यशालि स्त्रियाँ करें तो उनका अति उतम फल मिलता है। पर घर में यदि सौभाग्यशालि स्त्रियाँ न हौ तो कोई भी स्त्री एवं कुमारिका भी यह व्रत कर सकती हैं।
- स्त्री के बदले पुरुष भी यह व्रत करें तो उसे भी उतम फल अवश्य मिलता है।
- यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिये। खिन्न होकर या बिना भाव से यह व्रत नहीं करना चाहिये।
- यह व्रत शुक्रवार को किया जाता है। व्रत शुरू करते वक्त 11 या 21 शुक्रवार की मन्नत रखनी पड़ती है। और पुस्तक में लिखी शास्त्रीय विधि अनुसार ही व्रत करना चाहिये। मन्नत के शुक्रवार पूरे होने पर विधिपूर्वक और इस पुस्तक में दिखाई गई शास्त्रीय रीति अनुसार उधापन विधि करनी चाहिये। यह विधि सरल है। किन्तु शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत न करने पर व्रत का जरा भी फल नहीं मिलता है।
- एक बार व्रत पूरा करने के पश्चात फिर मन्नत कर सकते है और फिर से व्रत कर सकते है।
- माता लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप हें। उनमें उनका ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ ही “वैभवलक्ष्मी” है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अति प्रिय है। व्रत करते वक्त पुस्तक में दिये हुए माँ लक्ष्मीजी के हर स्वरूप को और श्रीयंत्र को प्रणाम करना चाहिये। तभी व्रत का फल मिलता है। अगर हम इतनी भी मेहनत नहीं कर सकते हैं तो लक्ष्मीदेवी भी हमारे लिये कुछ करने को तैयार नहीं होंगी। और हम पर माँ की कृपा नहीं होंगी।
- व्रत के दिन सुबह से ही “जय माँ लक्ष्मी”, “जय माँ लक्ष्मी” का रटन मन ही मन करना चाहिये। और माँ का पूरे भाव से स्मरण करना चाहिये।
- शुक्रवार के दिन यदि आप प्रवास या यात्रा पर गये हों तो वह शुक्रवार छोड़कर उनके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिये पर व्रत अपने ही घर में करना चाहिये। सब मिला कर जीतने शुक्रवार की मन्नत ली हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिये।
- घर में सोना न हो तो चाँदी की चीज़ पुजा में रखनी चाहिये। अगर वह भी न हो तो रोकड़ रुपया रखना चाहिये।
- व्रत पूरा होने पर कम से कम सात स्त्रियो को या आपकी इच्छा अनुसार जेसे 11,21,51,101 स्त्रियो को वैभवलक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का तिलक करके भेंट के रूप में देनी चाहिये। जितनी ज्यादा पुस्तक आप देंगे उतनी माँ लक्ष्मी की ज्यादा कृपा होगी और माँ लक्ष्मी जी का यह अद्भुत व्रत का ज्यादा प्रचार होगा।
- व्रत के शुक्रवार को स्त्री रजस्वला हो या सूतकी हो तो वह शुक्रवार छोड़ देना चाहिये और बाद के शुक्रवार से व्रत शुरू करना चाहिये। पर जितने शुक्रवार की मन्नत मानी हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिये।
- व्रत की विधि शुरू करते वक्त ‘लक्ष्मी स्तवन’ का एक बार पाठ करना चाहिये।
- व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिये और शाम को व्रत की विधि करके माँ का प्रसाद लेकर शुक्रवार करना चाहिये। अगर न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन कर के शुक्रवार करना चाहिये। अगर व्रतधारी का शरीर बहुत कमजोर हो तो ही दो बार भोजन ले सकते हैं। सबसे महत्व की बात यही हें की व्रतधारी माँ लक्ष्मीजी पर पूरी-पूरी श्रद्धा और भावना रखे। और ‘मेरी मनोकामना माँ पूरी करेगी ही’, ऐसा द्रठ संकल्प करें।
माँ वैभवलक्ष्मी आप पर प्रसन्न हों।
जय वैभवलक्ष्मी माँ ।