जय वैभवलक्ष्मी माँ ।
नवसारी से एक बहन का पत्र था।
हम बहुत गरीब थे। मेरे पति अपंग ओर बीमार थे। दो छोटे बच्चे थे। बड़ी लड़की पोस्ट में नोकरी करती थी। उसकी तंख्वाह में से घर खर्च चल रहा था। वह पच्चीस साल की हो गई थी। इसलिए हम उसकी शादी करने की फिक्र में थे।
संयोग से एक लड़का भी मिल गया। लड़की को लड़का पसंद आ गया और लड़के को लड़की पसंद आ गई। शादी की तिथि पक्की हो गई। पर एक बाधा आई। लड़के की माँ ने कहा, ‘ शादी भले ही सादगी से हो जाये पर आपकी लड़की १०० ग्राम सोने के गहने ले कर आयेगी तो ही यह शादी होगी। वरना मैं संमति नहीं दूँगी।
हमारी स्थिति चिंताजनक हो गई। मानो किनारे पर आयी नौका डूबने लगी। बचत तो थी नहीं! अब १०० ग्राम सोना कहाँ से निकले?
मैं उदास होकर दरवाजे पर खड़ी थी। तभी बाहर के रास्ते पर से एक मोटर-साइकिल तेजी से गुजर गई। उसकी उपर से कोई चीज़ सरक कर हवा में उडी और नीचे गिर गई। मैं बाहर निकल कर देखने लगी की क्या गिर गया? तो वो “वैभवलक्ष्मी व्रत” की किताब थी। मैंने साड़ी से पोंछ कर उसे साफ किया और आखो पर लगा कर बाहर ही बैठ कर पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते मुजे हुआ की मैं भी यह वैभवलक्षमी व्रत करूँ तो मेरी आपति भी टल जाये। लगता है माताजी ने मदद करने के लिये ही यह किताब मेरे तक पहुंचा दी होगी। मेरे मन में अदम्य श्रद्धा जाग गई।
दूसरे दिन शुक्रवार था। मैंने स्नान कर के ग्यारह शुक्रवार करने की मन्नत मान कर संकल्प किया। और किताब में लिखे मुताबिक विधि अनुसार पूरे भाव और श्रद्धा से व्रत करने लगी। शुक्रवार को सारा दिन “जय माँ लक्ष्मी” का रटन किया। शाम को चावल के ढेर पर तांबे के जल से भरा कलश रख कर, उपर कटोरी रखी। उसमे मेरे हाथ की सोने की अंगूठी रखी। उस किताब में लिखे अनुसार विधि पूजन करके गुड का प्रसाद रखा।
रात-दिन मेरा ध्यान “धनलक्ष्मी माँ” की छबि में लगा रहता। मैं रोज़ उनसे दर्शन कर के गिड़गिड़ाती। पांचवे शुक्रवार को शाम को मैंने “धनलक्ष्मी माँ” की छबि का दर्शन करके पूजन विधि शुरू की, तबी मेरा पंद्रह साल का लड़का दौड़ता आया। उसने कहा, ‘मा! देख! हमारी महाराष्ट्र की लॉटरी लगी। पूरे पचास हजार का इनाम लगा है, मा!
मैं आनंद से उछल पड़ी। मैंने कहा, ‘ तू जरा ठहर जा। मुजे पूजन कर लेने दे। प्रसाद ग्रहण कर के बात करेंगे। मैंने उमंग से व्रतविधि पूर्ण की और हम सबने अति श्रद्धा से माँ का प्रसाद ग्रहण किया। बाद में हम सब ने लॉटरी का नंबर चेक किया तो उसकी बात सच थी।
माताजी ने मेरी मुसीबत दूर कर दी थी। लॉटरी के पैसे मिलते ही उसमें से मैंने १०० ग्राम सोना ले कर लड़की के लिए गहने बनवाये और लड़की की शादी की। उसे गहने दे कर ससुराल भेजी।
इस तरह “वैभवलक्ष्मी व्रत” के प्रभाव से धनलक्ष्मी माँ ने मेरा दुःख दूर कर दिया।
जय धनलक्ष्मी माँ ।