हनुमान यानि की बजरंगबली। कहते है की वे रुद्र का अवतार है। शायद यही कारण है की अपने भक्तो की जरा सी प्राथना पर वो जल्दी प्रगत हो जाते है ओर उनके दुख – दर्द दूर करने आ जाते है। हनुमानजी के भक्तो को भूत – पिसाच – भूरी आत्मा या किसी का भय नही रहेता।
वेसे तो हनुमानजी की कई स्तुतिया प्रसिद्ध है पर उसमे सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है हनुमान चालीसा। उसका ऐक कारण ये भी है की इसकी भाषा सरण है ओर कुछ ही दिनो के पाठ करने पर ये हमको याद हो जाती है। ओर दोस्तो क्या आपने हनुमान चालीसा के इन दोहो का अर्थ जानने की कोसिस की है, …
नमस्कार दोस्तो, ये रही हनुमान चालीसा अर्थ सहित आपके सामने,
दोहा
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारी।
बरनऊं रधुबर बिमल जसु, जो डायकु फल चारी।।
श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रधुवीर के निमर्ल यश का वर्णन करता हू, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम ओर मोक्ष को देने वाला है।
बुद्धिहिन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥
हे पवन कुमार! मे आपको सुमिरन करता हू। आप तो जानते ही हों कि मेरा शरीर ओर बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए ओर मेरे दुखों व दोषो का नाश कर दीजिए।
चोपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥
श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान ओर गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक ओर पाताल लोक में आपकी किर्ति है।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥
हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
हे बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, ओर अच्छी बुद्धि वालों के साथी, सहायक है।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
आप सुनहरे रंग, सुन्दर वस्त्रो, कानों में कुण्डल ओर घुंघराले बालों से सुशोभित है।
हाथ बज्र ओर घ्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेऊ साजै॥
आपके हाथ में बज्र ओर घ्वजा है ओर कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
आप शंकर के अवतार है। हे केसरी नंदन आप के पराक्रम, महान यशकी संसार भरमे वंदना होती है।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
आप प्रकांड विद्या निधान है, गुणवान ओर अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम के काज करने के लिए आतुर रहते हे।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
आप श्री राम चरित सुनने में आनंद रस लेते हे। श्री राम, सीता ओर लखन आपके हदय में बसे रहते हे।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया ओर भयंकर रूप करके लंका को जलाया।
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥
आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा ओर श्री रामचन्द्र जी के उद्देश्यों को सफल कराया।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥
आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की ओर कहा कि तुम मेरे भरत जेसे प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥
श्री राम ने आपको यह कहकर हदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजारो मुख से लिया जाएगा।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान सुनते है।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णत: वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना। राम मिलाय राज पद दीह्ना॥
आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
आपके उपदेश का विभीषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जनता है।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहूंचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
संसार में जीतने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सरण हो जाते है।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप अखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥
जो भी आपकी शरण में आते है, उस सभी को आनंद प्राप्त होता है, ओर जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तै काँपै॥
आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते है
भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावै॥
जहां महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहां भूत, पिशाच पास भी नहीं आ सकते।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है ओर सब पीड़ा मिट जाती है।
संकट तै हनुमान छुडावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में ओर बोलने में, जिनका घ्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते है।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा॥
तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने बड़े ही आसानी से कर दिया।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै॥
जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करें तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फेला हुआ है, जगत में आपकी किर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
हे श्री राम के दुलारे! आप सजजनों की रक्षा करते है ओर दुष्टों का नाश करते है।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आपके पास आठों सिद्धीयां ओर नौ निधियां है ओर आप किसी को भी ये आठों सिद्धीयां ओर नौ निधियां दे सकते है।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
आप निरंतर श्री रधुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपसे पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम की औषधि है।
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते है और जन्म जन्मांतर के दुख दूर होते है।
अंतकाल रघुवरपुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
अंत समय श्री रधुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलाएंगे।
और देवता चित न धरई। हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥
हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है ओर सब पीड़ा मिट जाती है।
जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो,! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंघनों से छूट जाएगा और उसे परमान्न्द मिलेगा।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, की जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥
हे हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम के दास है। इसलिए आप उसके हदय में निवास कीजिए।
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं। हे हनुमान जी! आप श्री राम, सीता जी ओर लक्ष्मण सहित मेरे हदय में निवास कीजिए।
॥ सियावर रामचंद्रजी जय ॥
” दोस्तो, महर्षि व्यास जी ने कहा है की, कलयुग सर्वश्रेष्ठ है, क्यू की जो फल सतयुग मे 10 वर्ष तप ओर जप करने से मिलता है – उसे मनुष्य त्रेता युग मे 1 वर्ष मे – ओर द्वापर युग मे 1 महीने मे – ओर वही फल कलयुग मे बस कुछ दिनो मे मिल जाता है। ‘इसलिए दोस्तो हरी का नाम लेते रहो ओर उनका गुणगान करते रहो।
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