‘ वैभवलक्ष्मी व्रत ‘ – जय लक्ष्मी माँ
राधा बहन की सुनार जाति में ज़्यादातर स्त्रिया गौरवर्ण की और रूपवान। पर राधाबहन की बेटी सोनाली थोड़ी श्याम थी। उपर से पति की स्थिति भी साधारण। बड़ा दहेज देने की शक्ति उसमें न थी। सोनाली ग्रेजुएट हो गई थी पर उसकी शादी नहीं हो रही थी।
आयु बढ्ने लगी। अंतः माता-पिता की चिंता भी बढ़ने लगी। सोनाली खाना पकाने में और इतर प्रवृतियों में कुशल थी। स्वभाव से भी सयानी थी। पर शादी की बात में पीछे रह गई।
एक दिन सोनाली अपने कॉलेज फ्रेंड हीना से मिलने गई तो हीना एक किताब पढ़ रही थी। सोनाली ने पूछा, ‘हीना, क्या पढ़ रही हो?’
‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की किताब है। हमारी पड़ोसन लिनाबहन ने आज उधापन किया है तो सब को एक-एक किताब बांटी थी।
‘मुझे दिखा?’
हीना ने सोनाली को किताब दी। किताब पढ़ते-पढ़ते सोनाली को हुआ, में भी यह व्रत करके देखू। शायद मेरी शादी हो जाय।
सोनाली ने कहा,’ हिना, यह किताब मैं ले जाऊँ?’
‘क्यों? व्रत करने का विचार हैं?’ हेमा ने हस कर पूछा।
‘हाँ! उम्र बढ़ती जाती है, और दिल बैठ-सा जाता है।’
‘तेरी बात सच्ची है। यह किताब तू ले जा।
शुक्रवार को सवेरे 11 शुक्रवार की मन्नत मानकर सोनाली ने ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने का संकल्प किया और व्रत शुरू किया।
उसी रात उनके फुफाजी एक लड़के की बात ले कर आये। जाती में ख्यातनाम धराना…धनवान… लड़का एम.एस.सी. पास था। सोनाली की फुफी ने सीधे लड़के के साथ ही बात चला कर सोनाली के गुण गाये थे। वह लड़का शांत स्वभाव की और होशियार लड़की के साथ शादी करने का इच्छुक था। जो उसके व्यापार में हाथ बंटा सके।
सोनाली तो यह बात सुन कर खुश-खुश हो गई।
अगले शुक्रवार को ही सादगी से सोनाली की शादी हो गई।
ऐसी है ‘माँ धनलक्ष्मी’ की कृपा! ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का चमत्कार।