‘ वैभवलक्ष्मी व्रत ‘ – जय लक्ष्मी माँ
मालती स्वभाव की सरल, होशियार, मृदुभाषी और कार्यनिपुण थी। फिर भी उन पर दुःख के पहाड़ टूट पड़े।
दो पुत्र हुए। फिर अचानक उनके पति का स्कूटर एक्सीडेंट हुआ। और उनके दो पाव कट गये। दाहिना हाथ भी क्षतिग्रस्त हो गया। समझो जान ही बच गई। घर की जवाबदारी मालती पर आ पड़ी। शादी को चार-पाँच साल ही हिए थे। इसलिये बचत भी न थी। सिर्फ फ्लेट था…अपना।
वह बहुत व्याकुल हो गई। किन्तु बाहर से पति को जरा सा भी लगने न दिया की वह घबरा गई है। उसने पति को बहुत हिम्मत दी।
सुख में सुनार, दुःख में राम… यह कहावत अनुसार मालती को भगवान याद आये। ऐसे संकट से तो भगवान ही बचा सकते है। वह सोचने लगी की में क्या करूँ तो मुजे कुछ रास्ता मिले।
अचानक उसको याद आया की उसकी सुशीभाभी कुछ व्रत करती है – और उनहो ने कहा था की इसी ‘ वैभवलक्ष्मी माँ व्रत’ के वजे से मेरा परिवार सुखी है और वह यह व्रत की बहुत महिमा गाती है। एक बार सुशीभाभी ने उधापन में मालती को बुलाया था और व्रत की पुस्तक दी थी।
व्रत की पुस्तक!
मालती ने पुस्तक को अलमारी मे अच्छे से एक कोने में रखी थी। वह तुरन्त उठी और वह पुस्तक खोज निकाली। खोल कर उसमें छपे हुए श्रीयंत्र, लक्ष्मीजी के विविध स्वरूप की छबिया देखि। व्रत की विधि पढ़ी। व्रत की महिमा पढ़ी। उसे हुआ, में भी यह व्रत करूँ? लक्ष्मी माँ अवश्य रास्ता दिखायेंगी।
और उसने वहीं बैठे-बैठे ही ग्यारह शुक्रवार ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी और वहीं बैठे-बैठे ही उसने मन ही मन ‘जय माँ लक्ष्मी’ जी का रटन शुरू कर दिया।
शुक्रवार होते ही उसने पूरे भाव से ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ शुरू किया।
पांचवा शुक्रवार था। उस दिन मालती की सखी रीमा उसे मिलने आयी। वे दोनों कॉलेज में साथ-साथ पढ़ती थी। दोनों अपनी-अपनी बाते कर रही थीं। मालती की तकलीफ़ें सुन कर रीमा ने कहा, ‘मालती! तेरी तकलीफ़े दूर करने का एक रास्ता है। तू ब्यूटी-पार्लर शुरू कर। तूने ब्यूटी-पार्लर का कोर्स भी किया है और तू चित्रकारी भी अच्छी कर लेती है। तुझे तो यह सब कितना अच्छा आता है। तेरे फ्लेट में से एक रूम ब्यूटी-पार्लर के लिए खाली कर दे। हमारे पड़ोसी ब्यूटी-पार्लर का फर्नीचर-साधन सब बेचने वाले है। क्योकि वे फ़ोरेन जा रहे है। उन्हे जल्दी है। हमारा संबंध भी बहुत धरेलु है। में तुझे कम दाम में और हफ्ते से सब दिलवाउंगी। ठीक है!’
मालती को यह बात जर्च गई। उसने तुरन्त पति की अनुमति मांगी। पति को भी पत्नी घर में रह कर कुछ करे, उसमें कोई एतराज न था। उन्होने अनुमति दे दी। मालती ने रीमा को कहा, ‘तू जल्दी ही मुझे ब्यूटी-पार्लर का सामान दिलवा दे। मुझे तेरी बात बहुत जर्च गई है। काम भी होगा और पति-बच्चो का ख्याल भी रहेगा।’ सात दिन में ही मालती ने घर में ब्यूटी-पार्लर खोल दिया।
‘धनलक्ष्मी माँ’ की कृपा से एक ही माह में उसका पार्लर अच्छा जम गया।
इस तरह ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के प्रभाव से मालती को रास्ता मिल गया। एक ही साल में मालती ने बहुत से पैसे कमा लिए। उसमे से पड़ोस का फ्लेट खरीद कर उसमें एयरफन्डीशन ब्यूटी-पार्लर खोला।
ऐसी है ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की महिमा।