‘ वैभवलक्ष्मी व्रत ‘ – जय लक्ष्मी माँ
नीला बहन का फ्लेट का दरवाजा गलती से खुला रह गया था। उस समय उपर के फ्लेट में मिस्त्री का काम हो रहा था। ईंट ले जाते हुए एक मजदूर ने यह देखा। वह नियत का अच्छा नहीं था। उसने यह मौके का फाइदा उठाया और फ्लेट में धूस गया। नीला बहन स्नान करने बाथरूम में गई थी। फ्लेट में कोई न था। मजदूर तेजी से सामान उपर – नीचे करने लगा। अचानक बेडरूम में गद्दे के नीचे से सोने का हार, मंगलसूत्र और दो कंगन मिल गये। गहने को जेब मे सरका कर वह तेजी से बाहर निकला और फिर से ईंट लाने लगा। आधे-पौने घंटे के बाद पेट में दर्द होने का बहाना निकाल कर वह भाग निकला।
नीला बहन को अच्छी कहो या बुरी, यही आदत थी की रात को गहने निकाल कर गद्दे के नीचे रख देती और दूसरे दिन खाना बना कर पहन लेती। उनको तो ख्याल भी नहीं था की गहने चोरी हो गये है। खाना बना कर उन्होने हाथ साफ किये और गहने पहनने के लिए गद्दे के नीचे हाथ डाला तो कुछ नहीं मिला। उन्होने तेजी से सब उलट-पुलट कर डाला पर गहने कहीं भी नही मिले। उन्होने सारा बेडरूम छान मारा। पर कुछ नहीं मिला। वे तो जोर जोर से रोने लगी। रोने की आवाज सुन कर सब पड़ोसन दौड़ी आई और हकीकत सुन कर नीला बहन को सांत्वन देने लगी। उनका मायका पीछे की गली में ही था। कोई दौड़ कर वहां खबर दे आया। उनकी माँ और बहन भी दौड़ती आई।
माँ को देख कर नीला बहन फिर से सिसक-सिसक कर रोने लगी। माँ ने कहा ‘नीला! पहने हुए गहने निकालने ही नहीं चाहिये। अगर निकाले तो अलमारी में रखने चाहिये। जो हुआ सो … तू जानती है, मुजे “घनलक्ष्मी माँ” पर बहुत श्रद्धा है। उनका ग्यारह शुक्रवार “वैभवलक्ष्मी व्रत” करने की मन्नत ले। माँ तेरी बिगड़ी सुधारेगी।’
नीला बहन ने तुरन्त हाथ-पाव धो कर ग्यारह शुक्रवार वैभवलक्ष्मी व्रत करके ग्यारह “वैभवलक्ष्मी व्रत” की पुस्तक उपहार में देने की मन्नत मानी और मन ही मन “जय माँ लक्ष्मी” का जप पूरे भाव से करने लगी।
थोड़ी देर में उनके पति घर पर आये। नीला बहन ने रोते-रोते सब बात बताई। पति ने कहा, ‘ रोने से कुछ नहीं होगा। चल थाने में रिपोर्ट लिखवाये।
दोनों पति-पत्नी घर बंद करके थाने गये और पुलिस इंस्पेक्टर को चोरी की बात बता कर रिपोर्ट लिखने की विनती की।
इस्पेक्टर रिपोर्ट लिखने लगा। नीला बहन गहने की माहिती लिखवा रही थी की पुलिस कास्टेबल एक मजदूर की पकड़ कर वही थाने में आया और बोला:
‘साब! यह आदमी सुनार की दुकान के आगे टहल रहा था। मुजे शक हुआ और मैंने उसे पकड़ लिया। तो इसकी जेब में से यह गहने निकल आये।’ और नीला बहन के ही चार गहने कांस्टेबल ने इंस्पेक्टर की टेबल पर रख दिये, जिसकी माहिती नीलाबहन इंस्पेक्टर को लिखवा रही थी।
इंस्पेक्टर भी विस्मित हो गया की रिपोर्ट लिखते-लिखते ही चोर पकड़ा गया।
उस मजदूर ने गुनाह कबूल कर लिया और यह भी बताया की उसने किस तरह और कहां से यह गहने चुराये थे। और नीला बहन को भी पहचान लिया। लिखापट्टी करके इंस्पेक्टर ने गहने नीला बहन को सोप दिये।
इस तरह धनलक्ष्मी माँ की कृपा से चोरी हो गये गहने नीला बहन को तुरन्त वापस मिल गये। नीला बहन ने ग्यारह शुक्रवार ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करके ग्यारह “वैभवलक्ष्मी व्रत” की पुस्तक भाव से बांटी और अपनी मन्नत पूरी की।
ऐसा है ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव!