जय वैभवलक्ष्मी माँ
मेरे पति हीरे की दलाली करते है। हमारी आवक भी अच्छी है।
अचानक एक दिन हमारे पर विपति टूट पड़ी। रात्रि को मेरे पति घर आये। रोज़ के मुताबिक शर्ट उतार कर कील पर लटका दिया। पेन्ट बदल कर लूँगी पहनी और पेन्ट के खीसे में से हीरे के पैकेट निकालने गये तो नहीं मिले। मैंने किचन में से देखा कि वे कुछ ढूँढ रहे हैं। मैंने पूछा कि, ‘क्या ढूँढ रहे हो? कुछ खो गया है?’
‘हाँ! हीरे का पैकेट नहीं मिल रहा। पेन्ट के बायें जेब में रखा था। नहीं मिला तो हम बर्बाद हो जायेंगे।’
मेरे भी होशोहवाश उड़ गये। तेजी से गैस बंद कर के मैं और वे आने-जाने के रास्ते, अपार्टमेंट कि सीढ़िया, रास्ता सब जगह ढूँढने लगे। पर कहीं भी पैकेट दिखाई नहीं दिया।
हम दोनों पति-पत्नी उदास हो कर सोफ़े पर बैठ गये। बहुत सुख था। अब बहुत बड़ा दुःख आ गया।
उसी समय मेरे पति के दोस्त अपनी पत्नी के साथ हम से मिलने आये। मैं ने आवकार देकर उनको बिठाया और पानी दिया। हमारे उदास चेहरे देखकर उन्होने हस कर पूछा, ‘क्या बात है भाई! मुह लटकाये क्यों बेठे हो? लड़ाई हो गया है क्या ?’
मुजे रोना आ गया। मैंने रोते – रोते हीरे का पैकेट खो जाने कि बात कही। और वे लोग भी दंग रह गये।
कुछ सोच कर दोस्त की पत्नी रमीला बहन मुजे रसोईघर में ले गई और कहा, ‘ भाभी ! आप मेरी एक बात मानेगी?’
‘क्या?’
‘आप वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानो। आदमी व्रत में भले ही न मानते हो, पर हम औरतों को व्रत में श्रद्धा रखनी चाहिये। यह व्रत धनलक्ष्मी माता का है। आप मन्नत रख लो।’ और उसने मुजे व्रत की विधि बतायी।
मैंने तुरंत ही हाथ-पाव धो कर इक्कीस शुक्रवार ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी और 51 ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की किताब बाँटने की मन्नत मानी।
सारी रात मैं ‘जय माँ लक्ष्मी’ का रटन करती रही। सवेरे थोड़ा-थोड़ा उजाला होते ही माताजी की प्रेरणा से हम हीरे का पैकेट ढूँढने निकल पड़े। जिस रास्ते से वे स्कूटर पर आये थे वही रास्ते पर माँ का रटन करते – करते हम ध्यान से पैकेट ढूंढते-ढूंढते धीरे धीरे आगे बढ्ने लगे। हीरा बाजार में दाखिल होते ही एक कोने पर कूदे मे आधा दबा हुआ एक पैकेट पर मेरी नजर गई। मैंने पति को दिखाया।
‘यही हैं! यहीं हैं!’ मेरे पति ने चिल्लाते हुए तेजी से पैकेट उठा लिया। हीरे की छोटी-छोटी पड़ी को रबड़ बैंड से जकड़ कर एक पैकेट बनाया था, वह पैकेट वैसे का वैसा ही मिल गया।
जब शुक्रवार आया तब हम दोनों ने व्रत शुरू किया और पूरे भाव से 21 शुक्रवार पूरे किये। उध्यापन विधि में हमने आपके यहा से 51 ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की पुस्तकें लेकर 51 स्त्रियॉं को उपहार में दी।
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